जे०ई०/ए०ई०एस० रोग वाहक के रूप में चूहों तथा मच्छरों का नियत्रण
चूहे न सिर्फ हमारे घरों में रखो सामान, अनाज, फसलें इत्यादि कुतर कर नष्ट करतें है वरन् ये तमाम रोगों जैसे प्लेग, मस्तिक ज्वर इत्यादि के वाहक का कार्य करतें है। स्तनपाइयों में रोडेन्ट आर्डर सर्वाधिक विविधता का है जिसमें 2200 से अधिक प्रजातियां है। ये सामाजिक जीव है जिनकी सन्तानोत्पति की अत्यधिक क्षमता होती है। एक जोड़ी चूहे से वर्ष भर में 1000 से अधिक संख्या उत्पन्न होती है। चूहे का नियंत्रण सामूहिक रूप से 30-40 व्यक्तियों/कृषक समूहों द्वारा साप्ताहिक रूप से कार्यकम चलाकर ही संम्भव है।
सबसे पहले खेतों का निरीक्षण कर जिंदा बिलों की पहचान आवश्यक है जिन्हे चिन्हित कर एवं बन्द करतें हुये झण्डे लगा दें। दूसरे दिन निरीक्षण में जो बिल बन्द हो वहां से झण्डे हटा दे तथा जहां बिल खुले पाये गये वहीं झण्डा लगा रहने दे। खुले बिल में बिना जहर का चारा (एक भाग सरसों का तेल व 48 भाग भुना चना/बेसन) रखें। अगले दिन पुनः बिलों का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा रखें। उसके अगले दिन जिंक फास्फाईड 80 प्रतिशत की एक ग्राम मात्रा, एक ग्राम सरसों का तेल व 48 ग्राम भुना चना आदि से बने चारे को बिल में रखें अगले दिन बिलों का निरीक्षण करें तथा गरे चूहों को एकत्र कर जमीन में गाड दे। अगले दिन बिलों को बन्द कर दें उसके अगले दिन यदि बिल खुले पाये जाये तो कार्यकम पुनः प्रारम्भ कर दें।
घरों मे चूहा नियंत्रण हेतु जिंक फारफाईड के अलावा ब्रोमोडाईलोन 0.005 प्रतिशत की टिकिया का प्रयोग किया जा सकता है जिसे चूहा 3-4 बार खाने के बाद मरता है। चूहों की संख्या नियंत्रित करने के लिये अन्न भिण्डीरण धातु की बखारियों, पक्के/कंक्रीट पात्रों में करें जिससे उनको 'भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध न हो। चूहों की बिलें झाडियों, मेड़ों, कूड़ों आदि मे स्थाई रूप से होती है जिनकी साफ-सफाई से ये नियंत्रित हो सकते है। चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं-बिल्ली, उल्लू बाज, चमगादड़ आदि का संरक्षण करें। खेतों मे बर्ड पर्चर लगायें जिस पर पक्षी बैठ कर चूहों का शिकार कर सकें। चूहों के मलमूत्र, बाल, लार आदि में रोगों के कीटाणु होतें है जिनसे प्लेग, लेप्टोस्पाईरोसिस आदि बीमारिया फैलाती है। स्क्रब टाइफस पैरासाइट्स जे०ई० के प्रसार में सहायक होते है जो चूहों के शरीर पर पाये जाते है। इस प्रकार चूहा नियंत्रण जन-स्वास्थ, फसल सुरक्षा आदि में अत्यावश्यक है।
जे०ई० रोग के तथा अन्य संक्रामक रोगो के विषाणु के वाहक मच्छरों को कुछ विशेष पौधों को लगाकर नियंत्रण किया जा सकता है जैसे, गेंदा, गुलदाउदी, सिट्रोनेला, रोजमैरी, तुलंसी, लेवेंन्डर, जिरैनियम, मिन्ट / पिपरमिन्ट । ये पौधे तीव्र गंन्ध वाले एसेन्शियल आयल अवमुक्त करतें है। जिनसे मच्छर दूर भाग जातें है इस प्रकार इन फूल पौधों के आस पास लगाने से वातावरण तो सुगन्धित होता ही है साथ ही खतरनाक मच्छरों से भी बच्चाव होता है। इनमें से कुछ पौधो की प्रजातियों द्वारा तो ऐसे रासायनिक तत्व मुक्त किये जाते है जो मच्छरों की घाण क्षमता ही समाप्त कर देतें है। इस प्रकार इन पौधों के रोपड़ द्वारा भी मच्छरों को, दूर कर जे०ई०/ए०ई०एस० रोग से बचाव किया जा सकता है।